मेनार में ऐतिहासिक महापर्व जमराबिज इस बार 26 मार्च को, तैयारियों में जूटे ग्रामीण, बारूद के साथ खेलेंगे होली, नंगी तलवारों से होगी जबरी गैर

सुरेश चंद्र मेनारिया वल्लभनगर। उमंग-उल्लास और रंग अबीर का त्यौहार होली 24 मार्च को है। होली पर्व पर राजस्थान में अनेकों उत्सव आयोजित होते हैं। होली पर सब रंग, अबीर-गुलाल से होली खेलते हैं परन्तु मेवाड़ में एक गांव ऐसा भी है, जहां होली बारूद से होली खेली जाती है, और इस तरह की होली वहां पिछले करीब 450 वर्षों से अनवरत खेली जा रही है। उस गांव का नाम है मेनार व इस उत्सव का नाम है ‘जमरा बीज’ है। इस वर्ष ऐतिहासिक महापर्व जमराबिज मेनार में 26 मार्च को भव्य आतिशबाजी, बारूद के साथ मनाया जाएगा। जिसके लिए पूरे गांव को सतरंगी रोशनियों से सजाया जाएगा। उदयपुर चित्तौड़गढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग 48 पर उदयपुर से 40 किमी. दूर यह गांव पहाड़ी पर दो जलाशयों के बीच स्थित है। यह गांव बर्ड विलेज के नाम से भी विख्यात है और आईबीए के लिए नामित हो चुका है तथा दोनो तालाब वैटलैंड की श्रेणी में आते है। यहां अधिकांशतः मेनारिया ब्राह्मण निवास करते हैं। गांव की वर्तमान आबादी लगभग 10 हजार है। मेनारिया जाति से ब्राह्मण परन्तु स्वभाव से क्षत्रिय और बहादुर हैं। ज्यादातर लोग कृषि या दुग्ध का व्यवसाय करते हैं, तथा विदेशो में अपने हाथों से लज़ीज़ खाना बनाने के लिए भी प्रसिद्ध है। इस पर्व को लेकर रविवार से ओंकारेश्वर चौक में युवाओं द्वारा तलवारों से गैर नृत्य शुरू हो गया है, जो जमराबिज तक चलेगा, जिसमें कई युवा भी गैर नृत्य सीखेंगे। वही युवा व ग्रामीण तोप, तलवार, बंदूको की साफ सफाई व मरम्मत करने में जुटे हुए हैं।

अनोखी है तलवारों की गेर

मेवाड़ व मारवाड़ क्षेत्र में होली के अवसर पर लोक नृत्य गेर का लगभग सभी ग्रामों में आयोजन होता है। यह पूरे फाल्गुन मास चलता है, परंतु मेनार की गेर अन्य स्थानों से विशिष्ट इसलिए है क्योंकि अन्य जगह लकड़ी के डंडों से नृत्य होता है जबकि मेनार में ग्रामीण पारंपरिक वेशभूषा से सुसज्जित होकर यही गेर तलवारो से खेलते है। इसमें यहां के युवक, ग्रामीण एक हाथ में तलवार व दूसरे में लाठी घुमाते हुए ओंकारेश्वर चौक के वृत्ताकार में नृत्य करते हैं। एक रात के लिए मेनार में युद्ध सा वातावरण जीवंत हो उठता है, कही तोपे आग उगल रही है, तो कही बंदूको से बारूद दागा जा रहा है। इसी रात में लाखों रुपए के पटाखों से आतिशबाजी की जाती है।

इतिहास वाचन के बाद देर रात गेर नृत्य चलता है, तत्पश्चात अंत में आग का गोटा घुमाना व तलवारबाजी ग्रामीण करते हैं। इस प्रकार इस शौर्य के उत्सव का समापन होता है। इससे पूर्व दिन में ओंकारेश्वर चौक में लाल जाजम पर अमल कसुबा रस्म अदा की जाती है और पूरे दिन रात लगातार रणबांकुरा ढोल बजता रहता है।
450 वर्ष बाद भी इस उत्सव के आयोजन के उत्साह में कोई कमी नहीं आई है। आज भी जमरा बीज पर ग्राम की विवाहित बहन-बेटियां और युवा जो अधिकांशतः खाड़ी देशों या मुम्बई में या बाहर नौकरी करते हैं, जो इस आयोजन में शामिल होने के लिए जरूर आते हैं।

News Image
News Image
News Image
News Image
News Image
--
News Image
News Image
News Image
News Image
News Image
News Image
News Image
--
News Image
News Image
News Image
News Image
News Image
error: Content is protected !!