भींडर में सिद्ध चक्र महा मण्डल विधान एवं विश्व शान्ति महायज्ञ के चल रहे अनुष्ठान

भींडर। परम पूज्य वात्सल्य वारीधी आचार्य वर्धमान सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि अपूर्व सागर महाराज मुनि अर्पित सागर महाराज मुनि विवर्जित सागर महाराज के पावन सानिध्य में चल रहे सिद्ध चक्र महा मण्डल विधान एवं विश्व शान्ति महायज्ञ के चल रहे अनुष्ठान में रविवार को कई तरह के आयोजन हुए। सकल दिगम्बर जैन समाज के प्रवक्ता इन्द्र लाल फान्दोत ने बताया आज प्रातः एवं प्रतिष्ठा चार्य पण्डित अरविन्द जैन एवं बाल ब्रह्म चारी नमन भैया के दिशानिर्देशन में विधान के तृतीय दिवस पर भव्य शान्ति धारा हुई अध्यक्ष विमल प्रसाद लिखमावत, उपाध्यक्ष श्रीपाल हाथी, मंत्री विनोद कंठालिया,परामर्श दाता प्रकाश चन्द्र धर्मावत सहित सभी इन्द्र इंद्राणियो एवं , सैकड़ों श्रावक श्राविकाओ ने आज श्री जी का पंचामृत अभिषेक एवं शांतिधारा की पुण्यार्जक शांता देवी ललित कुमार अनिता देवी बोहरा ,महावीर प्रसाद सुशील कुमार कंठालिया परिवार मुनि संघ का पाद प्रक्षालन मीठालाल सुशील एडवोकेट , सोनू देवी हाथी परिवार एवं मुनि संग को शास्त्र भेंट ललित कुमार हेमलता हाथी परिवार ने किया सिद्धचक्र महामंडल विधानमें 64 अर्घ्यो के माध्यम से चौसठ ऋद्धिधारी सिद्ध भगवान की आराधना की गई । मुनि श्री अपूर्वसागर महाराज ने प्रवचन में कहा कि आज ऐसे अनेक पौद्गलिक चमत्कार देखने को मिलते हैं। टेलीविजन,रेडियो, टेलीफोन, मोबाइल आदि के माध्यम से आप घर बैठे हजारों कोस दूर के खेल आदि दृश्य देख लेते हैं व शब्द सुन लेते हैं तथा अपने इष्टजनों से प्रत्यक्ष जैसा वार्तालाप कर लेते हैं। ये सब यंत्र पौदलिक हैं फिर भी इनके बनाने वाले तो मनुष्य ही हैं, उनके मति, श्रुत (कुमति-कुश्रुत) ज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम हम और आपसे अच्छा भी है। फिर भी इनसे आत्मा के वास्तविक सुख की सिद्धि का कोई संबंध नहीं है। प्रत्युत जो आज कसाई खाने आदि के लिए अनेक हिंसक यंत्रों के निर्माण हो रहे हैं वे सब आविष्कार नरक-निगोदों के लिए ही कारण है। यहाँ जो इन ऋद्धियों का कथन है वह तो नियम से परम अहिंसक महाव्रती दिगम्बर मुनियों के ही संभव है। यद्यपि आज के हीन संहननधारी मुनियों के इनमें से कोई भी ऋद्धि नहीं हो सकती है। फिर भी इन ऋद्धिधारी गणधरों की या इनमें से किन्हीं एक दो आदि ऋद्धियों सहित मुनियों की पूजा करने से अनेक प्रकार के रोग, शोक, संकट, दारिद्र आदि कष्ट दूर हो जाते हैं। पूजक गुरुभक्ति के प्रभाव से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करके सुख, संपत्ति, संतति, यश आदि लौकिक वैभव को प्राप्त कर परम्परा से नियम से मोक्षसुख को प्राप्त कर लेते हैं। सिद्ध भगवान शुद्ध हो गए ,सिद्ध भगवान मुक्त हो गए, उनको अपनी पूजा से कोई लेना-देना नहीं लेकिन हम संसारी है ,दुखी है ,इसलिए हमारी इच्छा रहती हैं कि हम भी मुक्त हो जाएं, सुखी हो जाए इसलिए तुम्हारे चरणों में हम आए हैं, भक्ति कर रहे हैं ,पूजा कर रहे हैं। संसार में सभी जगह हमे दुख मिलता हैं,अशांति मिलती है लेकिन जब हमने भगवान के गुणों को देखा तो लगता है कि उनके स्मरण से ही हमें सुख – शांति मिलेगी । आपके जैसे गुणों की प्राप्ति के लिए मैं वंदना कर रहा हूं । हमें गुणगान में सुख एवं दोष में दुख होता है । हमारे कृपालु अनंतगुण भंडारी सिद्ध भगवान होते हैं , उनके आत्मा का एक-एक प्रदेश अनंतगुणों से भरा हुआ हैं ,अनंतगुण 8 गुण में समाहित हो गए हैं जिसने 8 गुणों को समझ लिया है वह सम्यक दृष्टि है ,यही आठ गुण सिद्धों में भी है ,हमारी आत्मा में भी वही गुण है। एक सिद्ध नाम रटने से असंख्यात जन्मों के पाप धुल जाते हैं।

सिद्धों के आठ कर्म के क्षय हो जाने से आठ गुण प्रगट हो जाते हैं। मोहनीय कर्म के क्षय से सम्यकव, ज्ञानावरण के क्षय से केवलज्ञान, दर्शनावरण के क्षय से केवल दर्शन, अन्तरायकर्म के क्षय से अनन्तवीर्य, नामकर्म के अभाव से सूक्ष्मत्व, आयुकर्म के अभाव से अवगाहनत्व, गोत्रकर्म के अभाव से अगुरुलघु तथा वेदनीयकर्म के अभाव से अव्याबाध सुख, सिद्धों में ये आठ गुण होते हैं। वास्तव में मुख्य रूप से ये आठ गुण माने गये हैं, वैसे तो एक सिद्ध भगवान में अनन्तानन्त गुण विद्यमान हैं। सिद्ध के उन अनन्तगुणों को तराजू के एक पलड़े में रखिये एवं उनमें से एक ज्ञानगुण को निकालकर दूसरे पलड़े में रख दीजिए, तो वह ज्ञा न गुण का पलड़ा भारी हो जायेगा क्योंकि ज्ञान गुण के बिना उन गुणों को अनुभय कराने वाला कोई भी नहीं है।

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